किस्मत से लड़ रहा हूँ... ✍️
तूफ़ानों की छाँव में भी, मैं अपना दीप जला रहा हूँ,
पत्थर सी तक़दीर से, मैं लोहे सा टकरा रहा हूँ।
राहों में काँटे बोए हालातों नें, मैं गुल खिलाता जा रहा हूँ,
छल की हर चाल पे, मैं सच्चाई सा मुस्कुरा रहा हूँ।
हारे हुए सपनों को, फिर से जीना सिखा रहा हूँ,
टूटे हुए अरमानों को, परिंदों सा उड़ा रहा हूँ।
साया नहीं कोई साथ मेरे, फिर भी सूरज सा दमक रहा हूँ,
किस्मत के हर वार को, हिम्मत से मैं थाम रहा हूँ।
ये जंग है मेरी खुद से भी, और वक्त से भी टकरा रहा हूँ,
जीवन के इस रणभूमि में, किस्मत से लड़ रहा हूँ!
-एक पुस्तकप्रेमी आणि समाजमाध्यमकार..
#विद्यार्थीमित्र प्रा.रफीक शेख
The Spirit of Zindagi Foundation
🎓 डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम विद्यार्थी फाउंडेशन, परभणी.
https://www.vidhyarthimitra.com
Post a Comment